बुधवार, 10 अप्रैल 2024

494-बहन के लिए

 1-ताँका

रश्मि विभा त्रिपाठी


1

सुरभित हों

तुम्हारे आँगन में

सुख के फूल

जीवन में अनंत

तुम्हारा हो वसंत।

2

पूरे हों सब

जो तुम्हारी आखों में

सपने जगे

तुम्हें कभी किसी की

नज़र नहीं लगे।

3

उगे सूरज

तुम्हारे आँगन में

पूर्व से आके

मिटे सब अँधेरा

हो सुख का सवेरा।

4

निकले चाँद

तुम्हारे आँगन में

झरे चाँदनी

हर रात पूनम

चमके चम- चम।

5

बहे सुख की

तुम्हारे आँगन में

ये सदानीरा

गिरि से उतरके

कल- कल करके।

6

तुम्हारी भोर

रजनी हो या साँझ

या दोपहर

हर एक पहर

हो सबसे सुंदर। 

7

तुम्हारे घर

गूँजें हर पहर

गीत खुशी के

चंदा, सूरज, तारे

आँगन में हों सारे।

-0-

2-माहिया- रश्मि विभा त्रिपाठी

 1

सपना हम पाल रहे

अपनी आँखों में

बहना खुशहाल रहे।

2

पूनम की रातें हों

हों दिन सब उजले

खुशियों की बातें हों।

3

ना तुमको नज़र लगे

प्यारी बहन तुम्हें

मेरी भी उमर लगे।

4

खुश हो, आबाद रहो

ओ मेरी बहना

तुम ज़िंदाबाद रहो।

5

पल हों सबसे प्यारे

आँगन में उनके

उतरें चंदा- तारे।

6

रब इतना करो अता

खुशियों को दे दो

उसका तुम आज पता।

7

दिन हों आनंद पगे

उनकी खुशियों को

ईश्वर ना नज़र लगे।

8

इतना भगवान करे

तेरे होठों से

हर पल मुसकान झरे।

9

ईश्वर ऐसा कर दो

उसके दामन में

सारी खुशियाँ भर दो

10

गम की ना धूप रहे

निखरा- निखरा- सा

तेरा ये रूप रहे।

11

सुख का झूला झूलो

ओ मेरी बहना

तुम खूब फलो- फूलो।

12

रब! इतना काम करो

जग भर की खुशियाँ

बहना के नाम करो।

13

कोई न अधूरा हो

प्यारी बहना का

हर सपना पूरा हो।

14

पल को भी ना तरसे

मेरी बहना के

आँगन में सुख बरसे।

15

बिकसें ये सूर्यमुखी 

मेरी बहना का

रब हो संसार सुखी।

16

मेरी प्यारी बहना

अपना ख़्याल रखो

तुम मेरा हो गहना।

17

होठों से हास झरे

मेरी बहना के

दिन हों उल्लास भरे।

18

हरदम पुर-नूर रहो

मेरी बहना तुम

चश्मे बद्दूर रहो।

19

इस जन्मदिवस पर मैं

दुआ करूँ, रहना

तुम खुशियों के घर में।

20

मंदिर में जाकरके 

सुख माँगा तेरा

झोली फैलाकरके। 

(06-04-2024)

गुरुवार, 4 अप्रैल 2024

493

 

सॉनेट/ अनिमा दास 

 

1.स्त्री का स्वर (सॉनेट)

मौनता की भाषा यदि होती..मृदुल -सहज व सरल

द्रुमदल न होते अभिशप्त..आ:! न होता अंत वन का 

न स्रोतवती होती शुष्क,न मेघों में होता अम्लीय जल 

न होता अज्ञात अभ्र में लुप्त एक पक्षी.. मृत मन का।

 

न होती यक्ष-पृच्छा..न मिथ्या विवाद की धूमित ध्वनि 

न कोई करता अनुसरण सदा अस्तमित सूर्य का कभी 

न पूर्व न पश्चिम न उदीची से.. प्रत्ययी पवन की अवनि  

न होती नैराश्य-बद्ध..निगीर्ण ग्लानि में रहते यूँ..सभी।

 

यह जन्म उसी प्राचीन इतिहास का है एक भग्नावशेष 

निरुत्तर निर्मात्री..पुरुष-इच्छा की स्त्री.. मौन-मध्याह्न 

स्वर में नीरव अध्वर..शून्य भुजाओं में अंतिम आश्लेष 

प्रतिक्षण ध्वस्त होते इसके कण-कण,हैं अर्ध अपराह्न।

 

यदि हुई अभिषिक्त यह उर्वि..यदि हुआ नादित अंभोधर 

प्रतिगुंजित होगा अंतरिक्ष में तब अविजित स्त्री का स्वर।

 

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2. प्रेम पर्व (सॉनेट -30)

 

मंदर पर सप्तरंग का आँचल,सखी,आओ उत्सव गीत गाओ

मदमत्त भ्रमर करे पुष्प संग प्रीत..कृष्ण रास संग रच जाओ

मुग्ध मन नृत्य करता.. है स्निग्ध किरणों में सम्पूर्णतः तन्मय

रूप यौवन का हो रहा तीर्ण...गमक रहा... कर रहा अनुनय।

 

प्रेम हो रहा व्यक्त सखी कि रक्तिम हुआ आह!प्राच्य आकाश 

स्वप्नगुच्छ हुआ स्फुटित..शतदल के सरोवर में आया प्रभास

पीत रंग ने किया स्पर्श.. मुखमंडल हुआ स्वर्ण सा अरुणित

मंद-मंद स्वर में कहा प्रेम ने 'सुनो प्रिया तुममें मैं हूँ प्लावित।'

 

इस नगर में नहीं रहा जीवन यदि... स्वर्गीय -संभव- सरल

यदि वसंतकुंज में भी... समस्त पीड़ाएँ रहीं. सदैव जलाहल 

कोई प्रतिवाद नहीं होगा..न होगा मृदु वेणु-ध्वन. न वंशीवट 

दृगोपांत में अश्रुमिश्रित परागरेणु से सिक्त होगा कालिंदी तट।

 

 

प्रेम पर्व की वर्तिका हो रही प्रज्वलित.. जीवन हुआ फाल्गुन 

मन के कोण-अनुकोण में गूँज रही गीतप्रिया की..मधुर धुन।

 

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सोमवार, 1 अप्रैल 2024

492-उसकी चुप्पी

 डॉ. कविता भट्ट 'शैलपुत्री'




उसकी चुप्पी- 

मेरे भीतर उतर आई हो 

कहीं जैसे; 

करने को आतुर हों 

अनन्त यात्रा 

मेरी आत्मा तक 

उसकी आँखें 

यों देख रही हैं 

एकटक मुझे 

भीतर से भीतर तक 

अभी तो स्पर्श भी न किया

 फिर ये कैसा जादू है!

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