गुरुवार, 30 जुलाई 2020

153-आके मिल जाओ


डॉ.कविता भट्ट 'शैलपुत्री'



शाम -ए -महफ़िल है- मेरे दिल के मेहमान हो तुम।
मेरी चाहत है समंदर! फिर क्यों परेशान हो तुम?

सबने मुख मोड़ लिया, आँखें हैं नम, व्याकुल मन
दीप आँधी में जला लूँगी  कि मेरे भगवान हो तुम।


आके मिल जाओ- बादलों से गिर रही रिमझिम,
जानेमन,  जानेचमन, जानेवफ़ा, मेरी जान हो तुम।
       
 प्रियतम! दीपों की टोली, तुम रंग भी हो रंगोली।
 थाल पूजा का हो पावन कि मेरे घनश्याम हो तुम।

3 टिप्‍पणियां:

  1. सुन्दर सृजन। चिट्ठा अनुसरणकर्ता बटन उपल्बध करायें।

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  2. क्षमा करें पेज में बहुत नीचे होने के कारण देर से नजर आया। ब्लॉग अनुसरण कर लिया है।

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  3. बहुत ही सुंदर भाव अपने जन्म के प्रति

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