रविवार, 2 अगस्त 2020

154-आवाज दे रही


डॉ.कविता भट्ट 'शैलपुत्री
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दबी चिंगारी है;  फिर भी उबाल आता है।
कैद मैना को आसमाँ का ख़्याल आता है।

सिलसिला ऊँची उड़ानों का यूँ तो उसकी;
जाने क्यों फिर घरौंदे का सवाल आता है।

नोंचे 'पर' उसके अँधेरे ने बेरहमी से बड़ी;
देख सूरज फिर उड़ने का मलाल आता है।

दोनों आँखों में वो तो दो 'ब्रह्माण्ड' रखती है;
उसकी राहों में मगर जग-जंजाल आता है।

उसे आवाज दे रही- अब नभ की नीलिमा;
जाने 'कविता' अब क्या चक्रचाल आता है।
          
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2
सजना! कोरोना भई जिंदगानी,
लॉकडाउन हो गयी प्रेम-कहानी।

रीत-दस्तूर का मास्क मुखड़े लगा,
तड़पूँ ऐसे- ज्यों मछरी बिन पानी।

सेनेटाइज करके दिल की गलियाँ,
बैठी हूँ कब से ओढ़ चूनर धानी।

कितना भी धोऊँ हाथों को अपने,
तू न छू सकेगा- गम है ये जवानी।

क्वारेन्टीन हो गए सपने सुहाने,
वैक्सीन सी हुई कसम निभानी।

बेरोजगार हो गयी प्रीत हमारी,
लहू बन बह गया आँखों से पानी
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